Dada Pardada Ke Jameen Apne Name Kare : दोस्तों आज के समय में ज्यादातर युवाओं को यह पता नहीं होता है कि अपने दादा परदादा के जमीन को अपने नाम करवाने की प्रक्रिया क्या है। क्योंकि पुराने जमाने के बुजुर्ग संयुक्त परिवार में रहते थे, जिसके कारण वे अपनी संपत्ति का बंटवारा नहीं कर पाते थे। उनकी मृत्यु के बाद उनके बच्चों में संपत्ति बटवारा को लेकर झगड़ा शुरू हो जाता था।
कानून के हिसाब से दादा परदादा की संपत्ति पर पोते का अधिकार होता है, आज के आर्टिकल में दादा परदादा का जमीन अपने नाम करवाने की प्रक्रिया बताया गया है। वैसे भी दादा की मृत्यु के बाद उनकी संपत्ति पिता के नाम पर ट्रांसफर होती है, फिर पिता की संपत्ति बेटे के नाम पर ट्रांसफर होती है। लेकिन कभी-कभी कुछ ऐसी परिस्थिति उत्पन्न हो जाती है, जब सीधे दादा परदादा की संपत्ति को पोते के नाम पर करना पड़ता है।
इस आर्टिकल में मैं आपको पूरा सरकारी नियम के अनुसार यानी लीगल तरीके से दादा परदादा का जमीन अपने नाम करवाने का तरीका बताने वाला हूं। लेकिन पैतृक संपत्ति अपने नाम रजिस्ट्री करवाने से पहले हमें समझ लेना चाहिए बटवारा क्या होता है?
पैतृक संपत्ति का बंटवारा क्या होता है?
किसी भी संयुक्त परिवार में पिता की मौत के बाद उसकी संपत्ति को उसके बच्चों में बराबर बराबर बांट दिया जाता है। बटवारा करते समय इस बात का ध्यान रखें कि सभी बच्चों को बराबर हिस्सा मिलें। ताकि बटवारा के समय भाइयों के बीच कोई वाद विवाद ना हो, बटवारा हो जाने के बाद भी भाइयों में प्रेम बना रहे। पैतृक संपत्ति का बंटवारा मुख्यतः तीन प्रकार का होता है।
- आपसी सहमति बटवारा
- पंचायत सहमति बटवारा
- रजिस्ट्री बटवारा
आपसी सहमति बटवारा
परिवार में आपसी सहमति बटवारा तब माना जाता है, जब परिवार के सभी सदस्य एक स्थान पर बैठकर पैतृक संपत्ति का बंटवारा बराबर बराबर बच्चों के बीच करते हैं। इसमें परिवार के सभी सदस्यों के मन मुताबिक संपत्ति का बंटवारा होता है, संपत्ति बटवारा हो जाने के बाद भी परिवार में एक दूसरे के प्रति कोई भेदभाव नहीं रहता है। वैसे आपसी सहमति बटवारा में कोई आपसी झगड़ा नहीं होता है। लेकिन दूसरी दृष्टि से देखा जाए तो आपसी सहमति बटवारा का नुकसान भी होता हैं।
जैसे मान लीजिए अगर एक परिवार में चार भाई हैं, पिता के मौत के चारों भाई में आपसी बटवारा होता है। कि मैं यहां का जमीन ले लेता हूं, आप वहां का जमीन ले लो। छोटा भाई वहां चौराहे का जमीन ले लेता है आदि। इस प्रकार से चारों भाई में आपसी सहमति से बटवारा हो जाता है।
लेकिन भविष्य में जब चारों भाई में संपत्ति को लेकर मतभेद पैदा होता है, उन्हें लगता है कि मुझे यहां का जमीन ना लेकर वहां का जमीन लेना चाहिए था। या मुझे जमीन कब मिला है अगले भाई को जमीन ज्यादा मिला है।
इस प्रकार की विचारधारा उत्पन्न होने लगती है, तो एक बार फिर से चारों भाई के बीच झगड़ा शुरू हो जाता है। इसलिए भविष्य के दृष्टिकोण से देखा जाए तो आपसी सहमति बटवारा नहीं करना चाहिए। क्योंकि आज के लोग मौसम के हिसाब से बदलते रहते हैं।
पंचायत सहमति बटवारा
आपसी सहमति बटवारा के जैसे ही पंचायती सहमति बटवारा होता है। बस इसमें फर्क इतना है जहां पर आपसी सहमति बटवारा में घर के सदस्य मौजूद होते हैं। वहीं पर पंचायती सहमति बटवारा में ग्राम पंचायत के सदस्य जैसे – ग्राम प्रधान द्वारा बटवारा किया जाता है। इसमें ग्राम प्रधान तथा गांव के कुछ शिक्षित और प्रतिष्ठित लोगों की बैठक बुलाई जाती है।
अगर मान लीजिए दादा परदादा के जमीन को चार भाइयों में बांटना है, तो पंचायत द्वारा आपसी सहमति से चारों भाइयों में जमीन जायदाद को बांट दिया जाता है। लेकिन पंचायत सहमति बटवारा का भी कुछ नुकसान है।
जैसे – कभी-कभी यह देखने को मिलता है, कि एक भाई द्वारा पंचायत मुखिया को कुछ पैसे देकर अपने साथ मिला लेता है। इसके बाद बटवारा होते समय ग्राम मुखिया द्वारा उसे भाई के हिस्से में ज्यादा जमीन दे दी जाती है। और बाकी भाइयों का नुकसान होता है, इसलिए पंचायत सहमति बटवारा भी आज के समय में सही नहीं है।
रजिस्ट्री बटवारा
आपसी सहमति बटवारा, पंचायत सहमति बटवारा से अच्छा रजिस्ट्री बटवारा होता है। क्योंकि कानूनी प्रक्रिया के हिसाब से चारों भाई में जमीन संपत्ति को बराबर बराबर बांटा जाता है। इसके बाद बाटी गई संपत्ति को उन भाइयों के नाम से रजिस्ट्री कर दी जाती है, यानि भविष्य में किसी बात को लेकर कोई झगड़ा उत्पन्न नहीं होता है। इसलिए आज के समय में रजिस्ट्री बटवारा करना समझदारी है।
वैसे भी दादा परदादा की जमीन का बंटवारा हमेशा रजिस्ट्री बंटवारा के अंतर्गत करना चाहिए। क्योंकि दादा परदादा की संपत्ति बहुत पुरानी होती है, अगर आप इसे आपसी सहमति बटवारा या पंचायती सहमति बटवारा से करते हैं। तो भविष्य में कोई और भी दादा पर दादा की संपत्ति पर अपना अधिकार जताने लगेगा। इसलिए आज के समय में रजिस्ट्री बटवारा करना चाहिए, रजिस्ट्री बटवारा दो प्रकार का होता है-
कोर्ट के द्वारा रजिस्ट्री
कानूनी प्रक्रिया के अनुसार जमीन जायदाद का बंटवारा होने के बाद कोर्ट के द्वारा रजिस्ट्री की जाती है। कोर्ट के द्वारा रजिस्ट्री करने के लिए जमीन के हिसाब से रजिस्ट्री का पैसा लगता है। कानूनी प्रक्रिया से जमीन का बंटवारा करते समय कोई पक्षपात नहीं किया जाता है। सभी भाइयों को उनके हिस्से की जमीन बराबर बराबर बांटकर उनके नाम पर रजिस्ट्री कर दी जाती है।
अंचल अधिकारी के द्वारा रजिस्ट्री
कानूनी प्रक्रिया के अनुसार चारों भाइयों में बराबर बराबर जमीन जायदाद का बंटवारा होता है, इसके बाद अंचल अधिकारी के द्वारा रजिस्ट्री की जाती है। जो इस बात का प्रमाण है कि कानूनी रूप से अब उन संपत्ति पर मालिकाना हक उन चारों भाइयों का है। आंचल अधिकारी द्वारा रजिस्ट्री करवाने में कम खर्च आता है।
Dada Pardada Ke Jameen Apne Name Kare.
दादा परदादा का जमीन अपने नाम करने से पहले हमने बटवारा का नियम आपको समझा दिया है, जिसके आधार पर पैतृक संपत्ति का बंटवारा कर सकते हैं। एक बार बटवारा हो जाने के बाद उसे अपने नाम पर रजिस्ट्री अवश्य करवा लेना चाहिए।
दोस्तों यहां पर मैं आपको एक बार फिर बता देना चाहता हूं कि कभी भी दादा परदादा की संपत्ति का आपसी सहमति बटवारा ना करें, और ना ही पंचायत सहमति बटवारा करें। हमेशा पैतृक संपत्ति का रजिस्ट्री बंटवारा करना चाहिए, जो एक कानूनी प्रक्रिया के हिसाब से होती है, और बटवारा होने के बाद वह जमीन आपके नाम से रजिस्ट्री कर दी जाती है। यानी भविष्य में बंटवारे की जमीन को लेकर कोई झगड़ा उत्पन्न नहीं होता है, न ही उस जमीन पर किसी व्यक्ति द्वारा अवैध कब्जा किया जाता है।
जिस प्रकार से नई जमीन खरीदने के बाद उसका अपने नाम रजिस्ट्री करते हैं, फिर दाखिल खारिज करते हैं। उसी प्रकार से दादा परदादा की जमीन को अपने नाम रजिस्ट्री करवा सकते हैं। रजिस्ट्री हो जाने के बाद दाखिल खारिज करना बहुत जरूरी होता है, क्योंकि बिना दाखिल खारिज के जमीन पर आपका मालिकाना हक नहीं होता है। दादा परदादा की जमीन अपने नाम करने के लिए निम्न प्रक्रिया को फॉलो करें-
- दादा परदादा की संपत्ति अपने नाम करने के लिए सबसे पहले आपको जमीन से जुड़ी सभी दस्तावेज जैसे – आधार कार्ड, पैन कार्ड, रजिस्ट्री स्टांप, फोटो आदि की व्यवस्था करना है।
- सभी दस्तावेज इकट्ठा करके अपने क्षेत्र के सर्किट ऑफिस में जाना है, वहां पर पैतृक संपत्ति अपने नाम करने से संबंधित बात करना है।
- कर्मचारी द्वारा आपको पूरी जानकारी बता दिया जाता है। उसके अनुसार जरूरी दस्तावेज और रजिस्ट्री फीस रजिस्ट्री आफिस मेंचण जमा कर देना है।
- इसके बाद रजिस्ट्री आफिस द्वारा यह जांच किया जाएगा, परिवार का जमीन किसके नाम पर है, परिवार में कौन कौन है, आप जमीन अपने नाम क्यों करवाना चाहते हैं आदि बातों की जांच की जायेगी।
- सभी जांच सही पाये जाने पर रजिस्ट्री आफिस द्वारा दादा परदादा की जमीन आपके नाम पर कर दिया जाएगा। जिसमें 8 से 12 दिन का समय लग जाता है।
- इसके बाद आप घर बैठे मोबाइल फोन से अपनी जमीन चेक कर सकते हैं। तथा जमींन से ही नक्शा भी डाउनलोड कर सकते हैं।
FAQs
दादा की जमीन पर किसका अधिकार होता हैं?
दादा की संपत्ति पोते के नाम पर तभी की जाती है, जब दादा से पहले पिता की मृत्यु हो जाती है। अगर पिता जीवित है तो सबसे पहले पिता के नाम पर की जाती है। उसके बाद पुत्र के नाम पर होती है।
पिता की मृत्यु के बाद कानूनी वारिस कौन होगा?
पिता की मृत्यु के बाद उनकी संपत्ति का वारिस बेटा होता हैं।
बिना वसीयत के पिता की मृत्यु हो जाए तो क्या होता हैं?
बिना वसीयत के पिता की मृत्यु हो जाने पर सबसे पहले वर्ग 1 के वारिस – पति/पत्नी, बच्चे, माता को उत्तराधिकार मिलता है। उसके बाद वर्ग 2 के वारिस – पिता, भाई, बहन, सगोत्र, सजातीय वारिस को उत्तराधिकार मिलता है।
पिता की मृत्यु के बाद क्या मां अपनी संपत्ति बेच सकती हैं?
पिता के मृत्यु के तुरंत बाद मां अपनी संपत्ति को बेच नहीं सकती हैं। सबसे पहले कानूनी तौर पर पिता की सम्पत्ति को सही उतराधिकारी के नाम किया जाता है। इसके बाद मां के नाम पर जो संपत्ति होती हैं, वहीं वह बेच सकती है।
पिता की मृत्यु के बाद पिता की संपत्ति में बेटी का क्या अधिकार है?
पहले बेटी की शादी होने के बाद पिता की संपत्ति में अधिकार नहीं मिलता था। लेकिन 2005 के संसोधन के बाद बेटी की शादी के बाद अब उसे पिता की संपत्ति पर पूरा अधिकार होता हैं। यानि आज के समय में पिता की संपत्ति पर जितना अधिकार बेटी का है, उतना ही अधिकार बेटे का होता हैं।
इसे भी पढ़े