Khatu Shyam Ke 11 Name : खाटू श्याम के 11 नाम क्या क्या है तथा महत्व 

Khatu Shyam Ke 11 Name : दोस्तों खाटू श्याम जी महाराज को कौन नहीं जानता है। खाटू श्याम मंदिर राजस्थान के सीकर जिला में स्थित है। दोस्तों आप को बता दें कि खाटू श्याम महाराज जी को 11 अलग-अलग नाम से जाना जाता है। लेकिन ज्यादातर लोग खाटू श्याम के ही नाम से जानते हैं। 11 अलग-अलग नाम क्या है, उनके पीछे कहानी क्या है पूरी जानकारी आर्टिकल में बताया जाएगा।

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अगर आपने महाभारत देखा होगा तो जरूर पांडू पुत्र भीम के पोते बर्बरीक को जानते होंगे। जिसके पास दिव्य शक्तिया थी। इन्हीं बर्बरीक का मंदिर राजस्थान के सीकर जिले में स्थित खाटू श्याम मंदिर के नाम से जाना जाता है। खाटू श्याम जाने वाले श्रद्धालु वहीं से कुछ दूरी पर स्थित मेहंदीपुर बाला जी मंदिर भी जरूर जाते हैं।

Khatu Shyam Ke 11 Name

बर्बरीक (Barbarik)

भीम और हिडिम्बा से पुत्र घटोत्कच का जन्म हुआ था। समय बीतने पर शिल्पी मूर दैत्य की कन्या मोरवी से उनका विवाह हो गया था। इसके बाद उनके एक पुत्र हुआ जिसका लंबें लंबे बाल थें, इसलिए उनका नाम बर्बरीक रखा गया। बर्बरीक ने श्री कृष्ण जी के कहने पर नवदुर्गा की अराधना की। नवदुर्गा ने प्रसन्न होकर उन्हें 3 तीर दिया, जिससे तीन लोक को जीत सकते हैं।

इसके बाद जब महाभारत शुरू हुआ तो बर्बरीक ने कहा, जो पक्ष हारेगा हम उधर से युद्ध करेंगे। भगवान श्री कृष्ण ने समझाया हे बर्बरीक अगर आपने ऐसा किया तो कोई पक्ष नहीं हारेगा। लेकिन बर्बरीक भी अपने वचन से पीछे नहीं हटना चाहते थे। इसके बाद श्री कृष्ण ने उनकी गर्दन काट दी, तत्पश्चात बर्बरीक का शीश राजस्थान के सीकर जिला में जाकर गिरा। अब वहीं पर बर्बरीक को खाटू श्याम के नाम से जानते हैं।

मौरवी नंदन (Morvi Nandan)

आपको पता होगा जिस प्रकार से हनुमान जी को केशरी नंदन कहा जाता है। यानि हनुमान जी केशरी के पुत्र हैं। उसी प्रकार से बर्बरीक माता मोरवी के पुत्र हैं, और उन्हें मौरवी नंदन के नाम से भी जाना जाता है।

तीन बाणधारी (Teen Baan Dhari)

भगवान श्री कृष्ण के कहने पर बर्बरीक ने माता नवदुर्गा की तपस्या की थी। जिससे प्रसन्न होकर नवदुर्गा ने उन्हें वरदान स्वरूप तीन शक्तिशाली बाण दिया था। इस तीन बाण से बर्बरीक पूरा तीनों लोक जीत सकते थें उनके मुक़ाबले का कोई नहीं था। इसलिए उन्हें तीन बाणधारी के नाम से भी जाना जाता है।

शीश का दानी (Seesh Ka Daani)

जब महाभारत का युद्ध शुरू हुआ तब बर्बरीक युद्ध में भाग लेना चाहते थे। जब माता मौरवी से आशीर्वाद लेने गये तो माता ने आदेश दिया बर्बरीक तुम्हें तीन अद्भुत बाण मिलें हैं। इसलिए जो पक्ष हारेगा उसी पक्ष का साथ देना। माता की आज्ञा मानकर बर्बरीक युद्ध के लिए चल दिए। जब यह बात भगवान कृष्ण को पता चला तो वे समझ गए अगर बर्बरीक हारने वाले पक्ष के साथ होगा तो युद्ध कभी खत्म ही नहीं होगा।

जब कृष्ण जी ने यह बात बर्बरीक के सामने रखी, तो बर्बरीक कृष्ण और अपनी माता के आदेश में से किसकी माने समझ नहीं पाया। इसलिए कृष्ण जी ने ब्राह्मण का भेष बदलकर उसका शीश दान में मांग लिया। तभी से बर्बरीक को शीश का दानी नाम से जाना जाता है।

कलियुग के अवतारी (Kalyug Ke Avtari)

जब श्री कृष्ण ने ब्राह्मण के भेष में बर्बरीक से शीश का दान मांगा था, तो बर्बरीक ने बिना संकोच अपना शीश दान कर दिया। इससे भगवान श्री कृष्ण ने प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया कि तुम्हें कलयुग में भगवान मानकर लोग तुम्हारी पूजा करेंगे। तुम्हारी पूजा करने से लोगों की मनोकामना पूरी होगी। तब से बर्बरीक को कलियुग के अवतारी नाम से भी जानते हैं।

खाटू नरेश (Khatu Naresh)

बर्बरीक का मंदिर राजस्थान के सीकर जिले के खाटू नगर में स्थित है। जिस प्रकार पहले हर नगर का राजा होता था। उसी प्रकार से खाटू नगर के लोगों ने बर्बरीक को नरेश यानि राजा माना तभी से बर्बरीक को खाटू नरेश नाम से भी जाना जाता है।

लखदातार (Lakdataar)

खाटू श्याम जी की महिमा बहुत ही निराली है, जिससे हर दिन लाखों लोग उनका दर्शन करने जाते हैं। उन पर श्याम जी अपना कृपा करते हैं। लाखों लोगों की मनोकामना पूरी करते हैं। इसलिए खाटू श्याम जी को लखदातार के नाम से भी जानते हैं।

लीले का अश्रवार (Nile Ghode Ka Sawar)

बर्बरीक के पास नीले रंग का घोड़ा था, इसलिए खाटू श्याम महाराज जी को नीले घोड़े का सवार कहते हैं। और हा स्थानीय भाषा में नीले को लीले कहा जाता है। इसलिए भक्त श्रद्धालु इन्हें लीले का अश्वार भी कहते हैं।

खाटू श्याम (Khatu Shyam)

बर्बरीक के शीश दान करने पर भगवान श्री कृष्ण बहुत प्रसन्न हो गए, और उन्हें अपना नाम श्याम से संबोधित किया। राजस्थान के सीकर जिले में खाटू नगर में स्थित होने के कारण उन्हें खाटू श्याम जी के नाम से जाना जाता है।

हारे का सहारा (Hare Ka Sahara)

जब व्यक्ति अपनी जिंदगी में निराश हो जाता है, तो भगवान की शरण में जाता है। जहां पर उसका सब पाप खत्म हो जाता है। और एक मान्यता के अनुसार महाभारत युद्ध में शामिल होते समय बर्बरीक की मां ने उन्हे आदेश दिया था कि जो पक्ष हारेगा उसका साथ देना, तब से खाटू श्याम जी को हारे का सहारा कहा जाता है।

मोर छड़ी धारक (Mor Chadi Dharak)

जैसा कि आप जानते हैं भगवान श्री कृष्ण की प्रिय वस्तु मोर पंख तथा बांसुरी हैं। इसलिए खाटू श्याम जी भगवान श्री कृष्ण के मोर छड़ी को धारण करते हैं। मोर छड़ी धारण करने के कारण खाटू श्याम जी महाराज को मोरछडी धारक कहा जाता है।

खाटू श्याम के 108 नाम

खाटू श्याम जी के ऊपर दिए गए 11 नाम बहुत ही प्रसिद्ध है। जिसे लगभग हर कोई जानता है। और लाखों भक्त उन्हें अलग-अलग नाम से पुकारते हैं। इसके अलावा भी खाटू श्याम जी के 108 नाम और भी हैं, जो इस प्रकार से है-

  • अचला: भगवान
  • अद्भुतह: अद्भुत प्रभु
  • अनया: जिनका कोई स्वामी न हो
  • अजया: जीवन और मृत्यु के विजेता
  • अम्रुत: अमृत जैसा स्वरूप वाले
  • आनंद सागर: कृपा करने वाले
  • अनंतजित: हमेशा विजयी होने वाले
  • अनिरुध्दा: जिनका अवरोध न किया जा सके
  • अव्युक्ता: माणभ की तरह स्पष्ट
  • बलि: सर्व शक्तिमान
  • दानवेंद्रो: वरदान देने वाले
  • दयानिधि: सब पर दया करने वाले
  • देवकीनंदन: देवकी के लाल (पुत्र)
  • धर्माध्यक्ष: धर्म के स्वामी
  • ऋषिकेश: सभी इंद्रियों के दाता
  • गोविंदा: गाय, प्रकृति, भूमि को चाहने वाले
  • हरि: प्रकृति के देवता
  • गोपाल: ग्वालों के साथ खेलने वाले
  • जगदिशा: सभी के रक्षक
  • जनार्धना: सभी को वरदान देने वाले
  • ज्योतिरादित्या: जिनमें सूर्य की चमक है
  • कमलनयन: जिनके कमल के समान नेत्र हैं
  • कंजलोचन: जिनके कमल के समान नेत्र हैं
  • जयंतह: सभी दुश्मनों को पराजित करने वाले
  • लोकाध्यक्ष: तीनों लोक के स्वामी
  • माधव: ज्ञान के भंडार
  • महेंद्र: इन्द्र के स्वामी
  • मनोहर: बहुत ही सुंदर रूप रंग वाले प्रभु
  • मोहन: सभी को आकर्षित करने वाले
  • मुरलीधर: मुरली धारण करने वाले
  • मनमोहन: सबका मन मोह लेने वाले
  • निरंजन: सर्वोत्तम
  • पद्महस्ता: जिनके कमल की तरह हाथ हैं
  • परब्रह्मन: परम सत्य
  • परमपुरुष: श्रेष्ठ व्यक्तित्व वाले
  • प्रजापती: सभी प्राणियों के नाथ
  • पुर्शोत्तम: उत्तम पुरुष
  • सहस्राकाश: हजार आंख वाले प्रभु
  • सहस्रपात: जिनके हजारों पैर हों
  • सनातन: जिनका कभी अंत न हो
  • सर्वपालक: सभी का पालन करने वाले
  • सत्यवचन: सत्य कहने वाले
  • शंतह: शांत भाव वाले
  • श्रीकांत: अद्भुत सौंदर्य के स्वामी
  • श्यामसुंदर: सांवले रंग में भी सुंदर दिखने वाले
  • श्रेष्ट: महान
  • स्वर्गपति: स्वर्ग के राजा
  • उपेंद्र: इन्द्र के भाई
  • वर्धमानह: जिनका कोई आकार न हो
  • विष्णु: भगवान विष्णु के स्वरूप
  • विश्वकर्मा: ब्रह्मांड के निर्माता
  • विश्वरुपा: ब्रह्मांड- हित के लिए रूप धारण करने वाले
  • वृषपर्व: धर्म के भगवान
  • वासुदेव: सभी जगह विद्यमान रहने वाले
  • अच्युत: अचूक प्रभु, या जिसने कभी भूल ना की हो
  • आदिदेव: देवताओं के स्वामी
  • अजंमा: जिनकी शक्ति असीम और अनंत हो
  • अक्षरा: अविनाशी प्रभु
  • अनादिह: सर्वप्रथम हैं जो
  • अनंता: अंतहीन देव
  • अदित्या: देवी अदिति के पुत्र
  • अपराजीत: जिन्हें हराया न जा सके
  • बालगोपाल: भगवान कृष्ण का बाल रूप
  • चतुर्भुज: चार भुजाओं वाले प्रभु
  • दयालु: करुणा के भंडार
  • देवाधिदेव: देवों के देव
  • देवेश: ईश्वरों के भी ईश्वर
  • द्वारकाधीश: द्वारका के अधिपति
  • गोपालप्रिया: ग्वालों के प्रिय
  • ज्ञानेश्वर: ज्ञान के भगवान
  • हिरंयगर्भा: सबसे शक्तिशाली प्रजापति
  • जगद्गुरु: ब्रह्मांड के गुरु
  • जगन्नाथ: ब्रह्मांड के ईश्वर
  • कृष्ण: सांवले रंग वाले
  • कमलनाथ: देवी लक्ष्मी की प्रभु
  • कामसांतक: कंस का वध करने वाले
  • केशव: घने काले बालों वाले
  • लक्ष्मीकांत: देवी लक्ष्मी की प्रभु
  • मदन: प्रेम के प्रतीक
  • मधुसूदन: मधु- दानवों का वध करने वाले
  • नंद्गोपाल: नंद बाबा के पुत्र
  • मयूर: मुकुट पर मोर- पंख धारण करने वाले भगवान
  • मुरली: बांसुरी बजाने वाले प्रभु
  • मुरलीमनोहर: मुरली बजाकर मोहने वाले
  • नारायन: सबको शरण में लेने वाले
  • निर्गुण: जिनमें कोई अवगुण नहीं
  • पद्मनाभ: जिनकी कमल के आकार की नाभि हो
  • रविलोचन: सूर्य जिनका नेत्र है
  • पार्थसार्थी: अर्जुन के सारथी
  • पुंण्य: निर्मल व्यक्तित्व
  • परमात्मा: सभी प्राणियों के प्रभु
  • सहस्रजित: हजारों को जीतने वाले
  • साक्षी: समस्त देवों के गवाह
  • सर्वजन: सब- कुछ जानने वाले
  • सर्वेश्वर: समस्त देवों से ऊंचे
  • सत्यव्त: श्रेष्ठ व्यक्तित्व वाले देव
  • सुमेध: सर्वज्ञानी
  • श्याम: जिनका रंग सांवला हो
  • सुदर्शन: रूपवान
  • सुरेशम: सभी जीव- जंतुओं के देव
  • त्रिविक्रमा: तीनों लोकों के विजेता
  • वैकुंठनाथ: स्वर्ग के रहने वाले
  • योगि: प्रमुख गुरु
  • विश्वदक्शिनह: निपुण और कुशल
  • विश्वमूर्ति: पूरे ब्रह्मांड का रूप
  • विश्वात्मा: ब्रह्मांड की आत्मा
  • यदवेंद्रा: यादव वंश के मुखिया
  • योगिनाम्पति: योगियों के स्वामी

श्याम बाबा के जयकारे

  • यदुराई की परछाई की जय
  • शरण भयहारी की जय
  • दिव्य गन धारी की जय
  • पदम् अवनाभः अवतारी की जय
  • सिंग संग खेलन वाले की जय
  • पल्लव छेदनकारी की जय
  • प्रभा प्रकाशी की जय
  • पावक धनुष धारी की जय
  • सोने की थाली म खाने वाले की जय
  • सोने की बांसुरी बजाने वाले की जय
  • स्वर्ण मोर पंख धारी की जय
  • श्याम बाबा की जय
  • हारे के साहारे की जय
  • तीन बाण धारी की जय
  • लीले के असवार की जय
  • केसरिया बागा वाले की जय
  • अहिलवती के लाल की जय
  • खाटू नरेश की जय
  • बंसी वाले की जय
  • रंगीले श्याम की जय
  • घट घट वासी की जय
  • सत्पत साही की जय
  • रिपुदल भजंकर्ता की जय
  • आलूसिंग दुलारे की जय
  • मंगल सुख दायक की जय
  • करुणा सिंधु की जय
  • संवाल शाह खाटू वाले की जय
  • दिव्यदृष्टि वाले की जय
  • महारभारत निर्णायक की जय
  • पत राखन वाले की जय
  • पालन हारे की जय
  • श्याम प्यारे की जय
  • मोर छड़ी वाले की जय
  • दुःख भंजनकारी की जय
  • सँवारे सरकार की जय
  • मोर मुकुट वाले की जय
  • पीताम्बर धारी की जय
  • अनूपम रूप धारी की जय
  • श्याम सलोने की जय
  • शीश के दानी की जय
  • सोमासुर दलन कर्ता की जय
  • अन्तर्यामी की जय
  • शिव भक्त की जय
  • विप्रजन सेवक की जय
  • महाभारत रण बाँकुरे की जय
  • छेल छबीले की जय
  • दिग्विजय सँवारे की जय
  • अमर शीश वाले की जय
  • छलका धारी भ्रमनाशक की जय
  • लीलाधारी को जय
  • नयन दुलारे की जय
  • वैजंती माला वाले की जय
  • भीम नंदन की जय
  • चीत चोर की जय
  • पतित पावन की जय
  • चूरमा खावण वाले की जय
  • श्याम वरण वाले की जय
  • भक्त हितकारी की जय
  • बर्बरीक की जय
  • महाभारत द्रष्टा की जय
  • फगुण शरताज की जय
  • मोहन प्यारे की जय
  • फत्ता गुजर रक्षक की जय
  • श्री धर्म धारी की जय
  • कलयुग अवतारी की जय
  • मातृ शिष्य की जय
  • हरित ऋषि रक्षक की जय
  • अनंत गन सागर की जय
  • गऊ भक्तन की जय
  • श्री बलधारी की जय
  • दीव्य धैय वाले की जय
  • शूरवीर अजय वाले की जय
  • अजय अमर की जय
  • श्याम कुंड वाले की जय
  • कुंडल धारी की जय
  • अत्तर सुगंध प्रेमी की जय
  • कृष्ण के प्यारे की जय
  • क्रतुरी तीलक वाले की जय
  • नटवर नागर की जय
  • कृष्ण मुरारी की जय
  • कजरारे नैनो वाले की जय
  • ओडर दानी की जय
  • श्याम धनी की जय
  • निशान प्रेमी की जय
  • कोसासुर हंता की जय
  • तीर कमान धारी की जय
  • श्याम दातार की जय
  • कुंती पुत्र की जय
  • खड़कासुर संहारक की जय
  • ब्रह्मचारी की जय
  • नखराले गोविन्द की जय
  • पांडव कुलदीपक की जय
  • कृष्ण रूप श्याम की जय
  • दीन दयालु की जय
  • श्याम ठाकुर की जय
  • मोहिनी छवि वाले की जय
  • बलियादेव की जय
  • श्याम बांके की जय
  • दानी महादानी की जय
  • माँ वचनधारी की जय
  • केशव माधव की जय
  • शरणागत देवन वाले की जय
  • लखदातार की जय
  • घुंगराले बाल वाले की जय
  • ध्जामन्न की जय
  • बासक दोहित की जय
  • बारस महिमा वाले की जय
  • जग वंदन की जय
  • पाण्डु पुत्र की जय
  • कुंज बिहारी की जय

FAQs

खाटू श्याम जी के कुल कितने नाम हैं?

खाटू श्याम महाराज जी के मुख्यतः 11 नाम हैं, जो इस प्रकार से है- बर्बरीक, मौरवी नंदन, तीन बाण धारी, शीश के दानी, लखदातार, कलयुग के अवतारी, नीले घोड़े का सवार, श्रीश्याम, हारे का सहारा, खाटू नरेश, मोरछडी धारक।

खाटू श्याम जी का मंत्र क्या हैं?

खाटू श्याम जी का मंत्र – ओह्म श्री श्याम देवाय नमः 

खाटू श्याम जी का दिन कौन सा होता हैं?

खाटू श्याम जी का जन्म दिन कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है। इसलिए वह दिन दर्शन के लिए अच्छा होता है।

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Author

  • Ajay Kumar Gupta

    इस लेख को अजय कुमार गुप्ता ने लिखा है। जो cgvyapam.co.in में मुख्य संपादक के रुप में कार्यरत हैं। अजय गुप्ता ने हिंदी विषय से B.A. और M.A. किए है। इसके बाद लेखन क्षेत्र में अपना कैरियर बनाया। लेखन क्षेत्र में इनके पास 5 साल का अनुभव है।

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